
कुछ अन्य स्रोत
बताते है कि मिड-लाइफ क्राइसिस पश्चिमी समाज से उपजा शब्द है जिसके व्यापक मायनों में अकेलापन, भावनात्मक असुरक्षा जैसे तमाम
मनो वैज्ञानिक कारक समाहित है। वैसे तो वनमानुष और इंसानों के वर्ताव में कई स्तरों पर समानता देखी गई है लेकिन मिड-लाइक क्राइसिस
के मामले में भी दोनों की बीच समानता
शोधकर्ताओं के लिए भी हैरानी का विषय है।
प्रेसिडिंग्स आँफ द नेशनल एकेडमी आँफ
साइंसेज में प्रकाशित इस शोध के नतीजे बताते हैं
कि वनमानुष भी इंसानों को भाति सुख-दुख को
महसूस करते हैँ वनमानुषों के व्यवहार को समझने
वाले प्राणी -वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और अर्थशास्त्रियों को मिलाकर बनाये गये एक दल ने
अपने शोध की बुनियाद पर ये निष्कर्ष निकाला
है. शोधकर्ताओं का मानना है कि वनमानुष भी
जवानी के दिनों में रोमत्व से भरपूर होते हैं और
अधेड़ उम्र आते- आते उनमें मिड लाइफ क्राइसिस
के लक्षण दिखाई देने लगते हैँ।
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