देश मे यात्राओं की रीढ़ मानी जाने वाली रेलवे में जबरन वसूली का धंधा बखूबी चलता है। एक तरफ केंद्र सरकार भ्रष्ट्राचार कम होने की बात कर रही है तो वही दूसरी तरफ इसे बढ़ावा मिल रहा है। रेल विभाग का एक काला सच जिसमें सामान्य का टिकट लिए यात्रियों से वसूली कर उन्हें स्लीपर में बैठने की परमीशन देते है। इस काम को बखूबी अंजाम दिया जाता है।
टीटी और आरपीएफ के जवानों के मिलीभगत का ये खेल बखूबी चलता है। ये वो यात्री होते हैं जिन्हें पता होता है कि टीटी को 100-50 रूपए देकर सामान्य का टिकट लेकर आराम से स्लीपर में बैठकर जाओ।
टीटी के टिकट चेक करने पर लोग टिकट के साथ रूपया भी निकाल लेते हैं। और टीटी महाशय जुर्माना की पर्ची न काटते हुए रूपए को कोट की जेब में रख लेते हैं।
स्लीपर क्लास में ट्रेन की फर्श पर बैठे यात्रियों में अधिकतर के पास सामान्य का टिकट होता है। रात्रि के समय फर्श पर सोने की वजह से आरक्षण कराए हुए यात्रियों को आने-जाने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। लेकिन टीटी और रेलवे सुरक्षा बल के जवानों को इससे क्या मतलब है। उन्हें तो पैसा वसूलना है।
रेलवे सुरक्षा बल के जवानों की बात करें तो पैसा कमाने के लिए फर्श पर बैठे लोगों से टिकट मांगते हैं।
सामान्य का टिकट मिलने पर चालान की धमकी देते हैं। अगर यात्री उनके मन मुताबिक पैसा नही देता तो मारपीट शुरू कर देते हैं। जिनकों सुरक्षा के लिए रखा जाता है वो इतना बुरा बर्ताव करते हैं ताजुब की बात है। सरकार से शायद कम वेतन इन लोगों को मिलता होगा। तभी ट्रेन में अपना डंका बजाते हैं।
एक सच्ची घटना के बारे में जानकारी देना चाहता हूं। जून 10 को पदमावत ट्रेन से दिल्ली के लिए रवाना हुआ था। मुरादाबाद तक तो कोई पूछने नही आया था कि टिकट दिखाओ। मुरादाबाद के बाद 2 टीटी चेक कर रहे थे। उनसे आगे 3-4 रेलवे सुरक्षा बल के जवान चल रहे थे। एस-4 में कुछ यात्री जो फर्श पर सो रहे थे। उनके पास सामान्य श्रेणी का टिकट था।
तभी रेलवे सुरक्षा बल के जवानों ने लोगों को जगाकर टिकट मांगा।
सामान्य श्रेणी का टिकट देखते ही वो आग बबूला हो गए। एक लड़का जो अपने परिवार के साथ सफर कर रहा था उसे मारना शुरू कर दिए। जिसे देखते हुए और जो थे लोगों ने 200 रुपए उन्हें दिए। थोड़ी देर बाद टीटी ने टिकट मांगा तो वो भी पैसे की मांग करने लगा।
उन लोगों ने सारी बात बताई तो टीटी का कहना था उनका क्या हक है। मै अभी आरपीएफ के जवानों से बात करूंगा। उसमें से एक बिना टिकट बैठा लड़के ने पांच सौ का नोट दिया जिसमें से टीटी ने 2 सौ वापस कर बाकी चालान न करके अपने जेब में डाल लिया। ये एक रात और एक ट्रेन की बात हुई। हर रोज न जाने कितनी वसूली करते होगें ये लोग। ऐसे में जुर्माना न काटकर पैसा अपने जेब में रखने से सरकार को भी घाटा होता है। हमेशा खबरो में भी रेलवे घाटे में चलने की बात रहती है। सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ होता है रेलवे में। वसूली करने में आगे है।
सरकार दावे करती है कि भ्रष्ट्रचार कम हो रहा है, इस भ्रष्ट्राचार के लिए हम सब जिम्मेदार है। सरकार दावे करती है रेलवे की सुविधाओं के बारे में कहीं न कहीं ये खोखली जरूर होती हैं। आखिर कब तक ये वसूली का खेल चलता रहेगा। कब तक रेलवे को वित्तीय घाटा उठाना पड़ेगा।
रवि श्रीवास्तव +Ravi Srivastava
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