नई दिल्ली: दिल्ली से करीब आठ सौ किलोमीटर दूर बसा है पेशावर. खूबसूरत पहाडियों से घिरा ऐतिहासिक शहर पेशावर पाकिस्तान के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस की राजधानी भी है लेकिन अब पेशावर के इतिहास में एक ऐसा काला अध्याय भी जुड़ चुका है जिसे इंसानियत कई पीढियों तक भुला नहीं सकेगी. मंगलवार को आतंकवादियों ने पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला बोला और अंधाधुंध गोलियां बरसाते चले गए.
इस आंतकवादी हमले में करीब 140 लोगों की मौत हो गई जिनमें 132 स्कूल के बच्चे भी शामिल हैं. पाकिस्तान के इतिहास में तहरीक-ए-तालिबान के आतंकवादियों का ये सबसे घिनौना और दिल दहला देने वाला आतंकवादी हमला है इसीलिए आज पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है तालिबान.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ भले ही आर- पार की जंग का ऐलान कर दिया है लेकिन ये वही तहरीक-ए-तालिबान है जो कभी पाकिस्तान के हाथों की कठपुतली हुआ करता था लेकिन आज उसी तहरीके तालिबान को लेकर खौफ में जी रहा है पाकिस्तान. दरअसल तहरीके तालिबान की ये दास्तान जितनी खौफनाक है उतनी ही उलझी हुई भी है. क्योंकि खुद को पैदा करने वाले पाकिस्तान के लिए ही आज एक बददुआ बन चुका है तालिबान.
गोलियों और बम धमाकों की आवाज इस हरी भरी दुनिया का नसीब बन चुकी है.
पाकिस्तान की स्वात घाटी का पूरा इलाका पिछले कुछ सालों से जंग का मैदान बना हुआ है. ये वही इलाका है जहां नोबेल शांति पुरुषकार पाने वाली मलाला यूसुफजई का घर है. स्वात घाटी के इस पूरे इलाके में कुदरत की हर खूबसूरती मौजूद है. आसमान चूमते हरे दृ भरे पहाड़ है. मीठे झरनों का बहता पानी है. कुदरत की खूबसूरती का हर खजाना मौजूद है यहां. लेकिन अगर यहां कुछ नहीं है तो सिर्फ शांति. क्योंकि ये पूरा इलाका सालों से आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के प्रभाव में रहा है. यही वजह है कि यहां पाकिस्तान सरकार के काम से ज्यादा तालिबान की बंदूक बोलती रही है. पाकिस्तान के इसी इलाके में पेशावर भी आता है जहां मंगलवार को तहरीक-ए-तालिबान के आतंकवादियों ने 132 स्कूली बच्चों को बेरहमी से मार दिया.
पाकिस्तान की सरजमीन पर मौजूद तहरीक-ए-तालिबान आज पाकिस्तान के लिए ही सबसे बड़ा सिरदर्द और उसका सबसे बड़ा संकट बन चुका है. अमेरिका समेत दुनिया के चालीस देश अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तालिबान को खत्म करने के लिए भटकते रहे हैं लेकिन तालिबान आज भी उनकी पकड़ से ना सिर्फ बाहर है बल्कि अपने नापाक मंसूबों को अंजाम भी दे रहा है. पाकिस्तान और तहरीक-ए-तालिबान के बीच जंग भी लंबे वक्त से जारी है और आज तो वो एक नए मुकाम तक भी पहुंच चुकी है.
तहरीक-ए-तालिबान का बेस पाकिस्तान के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में और इसका पहला मुखिया बैतुल्लाह मेहसूद को बनाया था. बैतुल्लाह मेहसूद का संबंध पाकिस्तान के कबाइली इलाके में बसे मेहसूद कबीले से था. तहरीके तालिबान ने गठन के बाद से दक्षिणी वजीरिस्तान और नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में पाकिस्तान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया था.
तहरीके तालिबान की इस चुनौती को पाकिस्तान की सरकार शुरुवात में नजरअंदाज करती रही जिसका नतीजा ये हुआ कि तहरीके तालिबान ने फाटा समेत पूरी स्वात घाटी में अपने पैर मजबूती से जमा लिए थे. साल 2009 आते- आते तहरीके तालिबान की ताकत बेहद बढ चुकी थी. इस्लामी कानून को लेकर उसने अपने प्रभाव वाले इलाके में फरमान जारी करने शुरु कर दिए थे. लड़कियों के स्कूल जाने पर रोक लगा दी गई और स्कूलों को तालिबानियों ने अपनी बंदूकों की जद में ले लिया था. लेकिन इन सब के बावजूद पाकिस्तान सरकार की नींद उस वक्त टूटी जब स्वात घाटी से निकल कर तहरीके तालिबान ने पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में हमला बोलना शुरु कर दिया.
दरअसल तहरीके तालिबान, पाकिस्तान को एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहता है और अपने इस मकसद को आगे रख कर जब उसने पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ बगावत का ऐलान किया तो पाकिस्तानी फौज के टैंकों ने स्वात घाटी को रौंदना शुरु कर दिया था. 5 अगस्त 2009 को जब तहरीके तालिबान का मुखिया बैतुल्लाह मेहसूद एक धमाके में मारा गया तो उसकी जगह तहरीके तालिबान की कमान हकीमुल्लाह मेहसूद ने संभाल ली थी और इसी के बाद तहरीके तालिबान ने आमने दृ समाने की लड़ाई के बजाए आत्मघाती हमलों के जरिए एक नई जंग छेड़ दी थी.
पाकिस्तान के पहाडी इलाकों से उतर कर तहरीके तालिबान के आतंकवादियों ने साल 2009 में स्वात घांटी के बुनेर, मिंगोरा, प्योचार, दीर और मालकंड डिवीजन तक के एक बड़े इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था. पाकिस्तानी सेना जब स्वात घाटी में दाखिल हुई थी उस वक्त उसे तहरीक-ए-तालिबान से जबरदस्त प्रतिरोध का सामना भी करना पड़ा था. इस जंग में पाकिस्तानी सेना ने बख्तरबंद गाडियों, टैंको और हैलीकॉप्टर से तालिबान के खिलाफ जम कर हमला बोला था. पाक सेना की इस कार्रवाई के दौरान स्वात घाटी से करीब पांच लाख लोगों को पलायन भी करना पड़ा था लेकिन जब स्वात में तालिबान के दूसरे सबसे बड़े गढ चारबाग और अलीगंज पाकिस्तानी फौज के कब्जे में आए तो उसके बाद से तालिबान की कमर टूट गई थी.
अफगानिस्तान के तालिबान से पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान की दुनिया काफी हद तक मिलती- जुलती है. दोनों ही पख्तून समुदाय से संबंध रखते हैं. लेकिन इन दोनों तालिबान का इतिहास और इनका मकसद अलग रहा है. दरअसल अफगानिस्तान में रुस के खिलाफ लड़ाई में तालिबान को खड़ा करने में पाकिस्तान और उसकी फौज का हाथ रहा है. इस काम में अमेरिका ने भी पाकिस्तान की पीछे से मदद की थी. यही वजह है कि अफगानिस्तान में मौजूद तालिबान ने कभी भी पाकिस्तानी फौज या सरकार को टारगेट बनाने की कोशिश नहीं की वही तहरीके तालिबान ने पाकिस्तान को निशाने पर ले रखा है.
तहरीक-ए-तालिबान अमेरिका पर भी हमले की धमकियां देता रहा है. 2010 में न्यूयॉर्क के टाइम स्कॉयर पर हुए बम धमाके की जिम्मेदारी भी तहरीके तालिबान ने ली थी. यही वजह है कि अमेरिका पाकिस्तान में तालिबान के ठिकानों पर ड्रोन जहाज के जरिए लगातार बमबारी करता रहा है लेकिन खास बात ये है कि पाकिस्तानी फौज और अमेरिका की इस कार्रवाई के बावजूद तहरीके तालिबान का नेटवर्क आ भी कायम है.
पाकिस्तान के नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में तहरीक-ए-तालिबान के खिलाफ पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन आज भी थमा नहीं है. लेकिन तहरीके तालिबान नाम की इस मुसीबत के लिए खुद पाकिस्तान ही जिम्मेदार है. दरअसल तहरीके तालिबान के बीज साल 2002 में उस वक्त पड़े थे जब पाकिस्तान की सेना ने अमेरिका के साथ मिल कर आतंकवाद के खिलाफ जंग का ऐलान किया था. बीबीसी के 2004 के एक आर्टिकिल के मुताबिक दृ उस वक्त पाकिस्तान के कबीलाई इलाकों में उजबेक, चौचेन और अरब आतंकवादियों के बडी तादाद मे पनाह लेने की खबर सामने आई थी. जिनसे निपटने के लिए पाकिस्तान की फौज पहली बार देश के कबीलाई इलाके में दाखिल हुई थी. लेकिन फौज की इस कार्रवाई से भड़के कबीलाई संगठनों ने बाद में तहरीके तालिबान का गठन कर लिया और पाकिस्तानी फौज के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया.
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