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सफलता का जनक मैं पर असफलता यतीम क्यों?

यूपी का हाल
           आज चारों ओर यूपी के विकास की योजनाओं का डंका बज रहा है। यूँ कह लीजिये यह डंका जोर जोर से बजाया जा रहा है। दरअसल जो दिखता नहीं वो बताना पड़ता है। अब कुछ चीजें सरकार को दिखती हैं जनता को नहीं जब्कि कुछ जनता को दिखती हैं पर जिम्मेदारों को नहीं। आइये डालते हैं एक दृष्टि ऐसी ही समस्याओं पर जो अछूती हैं शासक वर्ग की दृष्टि से। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के महोली ब्लॉक में गरीब ठलिया चालक (रिक्सा की तरह का ठेला सवारी ढोने वाला) महोली से तकिया तक 5 किलोमीटर सवारी ढोता है और इसका किराया है महज 5 रुपये। कुछ साल पहले यह मात्र 2 रुपये ही था। अधिक संसाधन बढ़ने से अब इन लोगों को इतने कम किराए पर भी काम नहीं मिलता। 
              दरअसल यह एक शोषित वर्ग का एक बड़ा समूह है जिसकी समस्याएं किसी को दिखती ही नहीं। यहाँ पर क्षेत्र के कलवारी नामक गाँव के जगन्नाथ अस्सी वर्ष से कम क्या होंगे पर पेट पालने को आज भी यहीं पेशा अपनाये हैं। कहने को दलितों की बहुत सी सरकारें आई गयीं पर इन्हें कभी कोई लाभ न हुआ। ब्रम्हावली आंशिक तकिया नामक गाँव के मेहदी हसन भी अस्सी के लगभग ही होंगे पर ग़रीबी के चलते आज भी ठलिया चलाने को विवश हैं अब सवाल उठता है कहाँ गयीं अल्पसंख्यकों के विकास का राग अलापने वाली सरकारें। वैसे मेहदी हसन के अलावा खलील भी साठ के आस पास के होंगे। आतें हैं पदासीन जिम्मेदारों की कर्तव्य निष्ठा पर। आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि यहाँ के छोटे बड़े नेता और अधिकारी विभिन्न फैक्ट्री मालिकों एवं बड़े धनवानों से सीधा संपर्क रखते हैं पर इन लोगों से मिलकर इनकी सुनने का किसी के पास मौका नहीं। यहाँ पर अनूप नामक एक मजदूर की मौत खेत में काम करते समय लू लगने से हुई जब्कि उसकी उम्र लगभग पच्चासी (85) वर्ष से कुछ ऊपर थी। घटना 3 साल पुरानी है। इसके अतिरिक्त इन बूढ़ो को अधिक उम्र के चलते काम मिलने में काफी दिक्कत आती है और मिल भी गया तो करने में बहुत तकलीफ होती है। पर पेट की खातिर। 
          सबसे हास्यास्पद तो यह है यहां के कुछ चाटुकार गुजरात की झूंठ मूंठ की बातें करते है ऐसा लगता है जैसे वह सिर्फ वहीँ के अखबार पढ़ते हों, यूपी का नहीं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 बच्चों के लिए महज कागजी नियम साबित हुआ। प्रदेश में शिक्षकों की भीषण कमी है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए टी ई टी उत्तीर्ण लोगों को बच्चों को पढाने के बजाय अपने हक़ की जंग लड़नी पड़ रही है। जो शिक्षामित्र नियुक्त किये गए वह भी पढ़ाने के साथ अपनी समस्याओं और भविष्य को लेकर जूझने को मजबूर हैं ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता लगातार प्रभावित हो रही है। इन मासूमों के कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमे शिक्षक एक या दो हैं जबकि कक्षाएं पांच और ऊपर से बाबू गिरी का काम। यूपी के अधिकारी शिकायतों के प्रति कितना सजग हैं इसका नमूना ब्रम्हावली गाँव है यहाँ खुले में रखे ट्रान्सफार्मेर पर अधिकारी बोलते मौत तो कही भी हो सकती है जब्कि समस्या भले जस की तस हो पर इनकी हेल्पलाइन के अनुसार समस्या निस्तारित हो चुकी है। उक्त सम्बन्ध में एम् डी कार्यालय को भी फोन से जानकारी दी गयी पर वहां पर भी सिर्फ तालीम बतायी मिली। इसी गाँव में कई साल पहले खुले में रखे ट्रांसफार्मर की वजह से हुलासी नामक गरीब किसान की भैंस मर गई थी। इधर लखीमपुर जिला के बेहजम रोड पर भी कई ट्रान्सफार्मेर खुले में रखे हैं। विद्युत विभाग न सिर्फ लापरवाह है वरन यह खामियां अब तक यतीम हैं। चीफ सेक्रेटीएन्ट ऑफिस में सालों से समस्यांए पेंडिंग हैं इनका कोई पूंछा हाल नहीं है। 
             अब तक शायद ही किसी समस्या को निस्तारित किया गया हो। प्रदेश में धार्मिक सदभाब गायब हो रहा है लोगों की स्वतंत्रता छीनने का प्रयास जारी है। पूरे प्रदेश में पुलिस से सुरक्षा के बजाय जनता भयभीत है। सीतापुर जिले के जमुनिया गाँव के गंगाराम नाम के युवक को पुलिस रात को तंग करती है जब्कि उसका गुनाह सिर्फ इतना था उसने पुलिस के खिलाफ आर टी आई का प्रयोग कर दिया था। अब यह मामला मानवाधिकार आयोग ने दर्ज किया है। जगह जगह अराजकता जिम्मेदार ही फैलाते दिख रहे हैं। आधार बनाए जाने के नाम और खाता खोलने के नाम लोगों से शुल्क लिया गया जब्कि इन्हें कहा निःशुल्क जाता रहा। अधिकारी भी आधार में धन वसूली की सूचनाओं पे मौन रहे। आधार बानाने वालों के ठेके को न तो किसी ने चेक किया और नही कभी यह पूंछा गया कि तत्काल रसीद क्यों नहीं दी जा रही और शुल्क क्यों? वर्तमान में बन रहे राशन कार्ड का शुल्क कहीं कहीं गरीबों को सौ रुपये से अधिक तक देना पड़ा है। हालांकि सरकारी रेकॉर्ड में यह सामस्या है ही नहीं और न अब तक ऐसा कुछ दर्ज हुआ। लेकिन यह जनता न सिर्फ जानती है बल्कि अब तक भोग रही है। महिलाओं के ऊपर अत्याचार बढ़े हैं। प्रदेश में शिकार और अवैध कटान जोरो पर है। लेकिन यह समस्याए जमीनी है सरकारी रिकार्ड ऐसा बिलकुल नहीं बोलता। भोग तो जनता भोग रही है। लेकिन "ये पब्लिक है सब जानती है"। 

लेखक : रामजी मिश्र 'मित्र' +ramji mishra 
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