दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करें तो ये मालूम पड़ता है कि शहर के अलग अलग सामाजिक तबकों के बीच एक फासला दिखता है.
ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी को मिला जनादेश समाज के किसी खास तबके का उसके पक्ष में ध्रुवीकरण ही है. यह बढ़ा चढ़ाकर कही गई बात है और गलत है.
आम आदमी पार्टी की जबर्दस्त जीत के लिए गरीबों और समाज के निचले तबके के मतदाताओं से बड़े पैमाने पर समर्थन मिलना है.
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नरेंद्र मोदी, किरण बेदी
पार्टी को मध्य वर्ग के मतदाताओं का दिल जीतने में भी कामयाबी मिली है और उसने उच्च वर्ग के बीच भी अपनी जगह बनाई है.
सीएसडीएस ने चुनाव बाद जो सर्वेक्षण कराए थे, उससे पता चलता है कि ‘आप’ को गरीब तबके के मतदाताओं के बीच बीजेपी की तुलना में 43 फीसदी की बढ़त हासिल थी.
आंकड़ें बताते हैं कि दिल्ली के गरीब तबके से आने वाले मतदाताओं का 22 फीसदी ही बीजेपी के पक्ष में था जबकि 65 फीसदी गरीबों ने ‘आप’ का साथ पसंद किया.
बीजेपी का प्रदर्शन
बीजेपी समर्थक
मध्य वर्ग के वोटरों के बीच दोनों पार्टियों का फासला तुलनात्मक रूप (14 फीसदी) से कम था लेकिन आकार के लिहाज से यह खासा महत्वपूर्ण है.
लेकिन उच्च मध्य वर्ग के मतदाताओं के बीच बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा है. यहां दोनों पार्टियों के बीच का फासला घटकर दो फीसदी रह गया है.
दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों से उभरने वाली तस्वीर भी इसी रवायत की ओर इशारा करती है. ग्रामीण दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 50 फीसदी वोट मिले हैं.
‘आप’ को 57 फीसदी
आम आदमी पार्टी के समर्थक
जबकि 2013 में इसी इलाके में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया था. डीडीए के एलआईजी इलाकों और झुग्गी झोपड़ी कॉलोनियों में आप को जबर्दस्त समर्थन मिलता दिखता है.
इन इलाकों में ‘आप’ को 57 फीसदी वोट मिले हैं. यह पूरे राज्य में पार्टी को मिले औसत वोट से तीन फीसदी ज़्यादा है जबकि बीजेपी को 32 फीसदी ही वोट मिल पाए.
मध्य वर्ग के वोटरों और निचल तबके के बीच बीजेपी को तवज्जो नहीं मिल पाई. यहां तक कि दिल्ली की कम विकसित कॉलनियों में भी बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा है.
कड़ा मुकाबला
दिल्ली के मतदाता
यह साफ है कि अनधिकृत कॉलनियों को नियमित करने का बीजेपी का दावा वोटरों को उत्साहित नहीं कर पाया.
दिल्ली के सभ्रांत इलाकों में बीजेपी और ‘आप’ के बीच कड़ा मुकाबला देखने में आया लेकिन यहां भी आम आदमी पार्टी को दो फीसदी की बढ़त मिली है.
दिल्ली के विधानसभा क्षेत्रों में एक ही तरह की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठिभूमि वाले वोटर नहीं हैं और भीतरी दिल्ली के ज़्यादातर निर्वाचन क्षेत्रों में मिली-जुली आबादी देखने को मिलती है.
वोट शेयर
दिल्ली चुनाव, मतदान
शायद इस वजह से बीजेपी के जनाधार के स्वरूप पर असर पड़ा और इसका नतीजा यह निकला कि पार्टी के वोट शेयर और उसे मिली सीटों में बहुत बड़ा फर्क आ गया.
दिल्ली चुनाव को वर्गवाद की राजनीति की शुरुआत करार देने से किसी को परहेज करना चाहिए और इसके कई कारण भी हैं.
पहला यह कि अमीरों और गरीबों के बीच वोटिंग के रुझान में बहुत ज़्यादा फर्क नहीं है. मध्य वर्ग में आम आदमी पार्टी को बड़े पैमाने पर वोटिंग हुई है.
चुनावी भाषण
दिल्ली चुनाव, मतदान
दिल्ली के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके पर असर रखने वाली कांग्रेस की जमीन हासिल करने में ‘आप’ कामयाब रही.
जबकि बीजेपी उच्च वर्ग के बीच अपने जनाधार से आगे नहीं बढ़ पाई.
दूसरे, यह मानना मुश्किल है कि वर्ग राजनीति ऐसे माहौल में ठहर पाएगी जहां दोनों ही राजनीतिक विरोधी समाज के एक ही तबके को अपनी ओर खींचना चाहें.
दिल्ली चुनाव, मतदान
अगर बिजली-पानी केजरीवाल के चुनावी भाषणों के प्रमुख बिंदु थे तो बीजेपी ने उसी तबके से ‘जहां झुग्गी, वहां मकान’ और जनधन योजना जैसी केंद्रीय योजना के फायदों का वादा किया.
अगर नरेंद्र मोदी ने दिल्ली को एक विश्वस्तरीय शहर बनाने के वायदा किया तो केजरीवाल ने भी मुफ़्त में वाई-फाई सुविधा और कारोबारियों के लिए कम वैट और जांच का वायदा किया.
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