इन दिनों राजस्थान के सीकर जिले की दांता रामगढ़ कस्बे का डाकिया परेशान है. उसके पास एक आधार कार्ड है जिसे उसे कार्डधारी के पास पहुंचाना है. कार्डधारी का नाम भी है, तस्वीर भी है, मोबाइल नंबर भी है. पता जरुर अधूरा है. अब आप पूछ सकते हैं कि इसमें दिक्कत क्या है. मोबाइल नंबर लगाइए और कार्डधारी से उसका पता पूछ लीजिए. या फिर इलाके के लोगों को तस्वीर दिखाइए. छोटा सा इलाका है दाता रामगढ़. कोई मुम्बई दिल्ली तो है नहीं जहां पड़ोसी पहचानने के बावजूद पहचानने से इनकार कर देते हैंडाकिए का दुख यही है कि वो चाहकर भी मोबाइल नहीं लगा सकता. आधार कार्ड पर लगी तस्वीर दिखाता है तो लोग हंसते हैं. कह देते हैं कि यह तो हर किसी के दिल में बसते हैं और आप इन्हें तलाश कर रहे हैं. डाकिया परेशान है और साथ ही प्रशासन भी.
कहानी यह है कि किसी ने हनुमानजी का आधार कार्ड बनवा लिया है. पिता का नाम पवनजी लिखा है.
हम कहते भी हैं कि पवनपुत्र हनुमानजी. खैर, डाकिए ने मोबाइल नंबर घुमाया तो विकास नाम के एक युवक ने फोन उठाया. विकास का कहना था कि उसने खुद दो साल पहले आधार कार्ड के लिए अर्जी दी थी लेकिन अभी तक उसका तो कार्ड बना नहीं बल्कि हनुमानजी का कार्ड बन गया. हो सकता है कि विकास ने आधार कार्ड के लिए कई बार हर मंगलवार या शनिवार हनुमानजी के मंदिर में मत्था टेका हो और प्रसाद बांटा हो. अब अगर प्रसाद को कोई नकद रुप अगर आधार कार्ड बनाने वाले दफ्तर में बांटता तो शायद उसे कार्ड मिल चुका होता.
तय है कि हनुमानजी को उनका आधार कार्ड डिलीवर नहीं हो पाएगा. या फिर संभव है कि कार्ड किसी नजदीक के हनुमान मंदिर में हनुमानजी के मूर्ति के सामने रख दिया जाए. यह कार्ड याद दिलाता रहेगा कि आधार कार्ड को लेकर किस तरह के घपले चल रहे हैं. पिछली सरकार ने करीब 4906 करोड़ रुपये खर्च करके देश की 67 करोड़ आबादी को आधार कार्ड दिलवाया है और मोदी सरकार अगले साल तक सौ करोड़ के आंकड़े को छू लेना चाहती है. इसके लिए 1200 करोड़ रुपये रखे गये हैं.
एक तरफ तो सरकार इतना पैसा खर्च कर रही है तो दूसरी तरफ ऐसी लापरवाही. अब कहने को किसी का भी नाम हनुमानजी हो सकता है. हमारे यहां उत्तर भारत में हर गांव कस्बे में अनेकों हुनमान नाम के लोग मिल जाते हैं. कुश्ती गुरु हनुमान, हनुमान सिंह या हनुमान यादव या हनुमान प्रभाकर या हनुमान प्रसाद. या फिर किसी राम का कोई हनुमान होता है.
मसलन, इन दिनों कहा जा रहा है कि अमित शाह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हनुमान हैं. अब हनुमान के पिता का नाम पवनजी भी हो सकता है लेकिन सवाल उठता है कि तस्वीर कैसे हनुमानजी की लगाई जा सकती है. आखिर किसी की तो उस पर नजर पड़नी ही चाहिए थी. किसी को तो टोकना चाहिए था. आधार कार्ड पर तस्वीर चिपकाई नहीं जाती. जिसका आधार कार्ड बनता है उसे खुद वहां जाना पड़ता है और कम्प्यूटर के आगे बैठ कर तस्वीर खिचवानी पड़ती है. अंगुलियों की छाप देनी पड़ती है और आंखों को भी कैमरे में उतारा जाता है. जाहिर है कि साक्षात हनुमानजी तो अवतरित नहीं हुए होंगे. न तस्वीर खिंचवाई होगी और न ही अंगुलियों की छाप दी होगी. अब यह शरारतन है या लापरवाही ...इसकी जांच होना जरुरी है.
वैसे कहने वाले तो कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद भले ही बीजेपी के नेताओं के अच्छे दिन आ गए हों , मोदी के अच्छे दिन आ गए हों लेकिन हनुमानजी को शायद अच्छे दिनों की इंतजार ही है. तभी तो हनुमानजी भी आधार कार्ड बनवा रहे हैं ताकि उन्हें सब्सिडी मिल सके. रियायती दर पर कैरोसिन तेल या गैस सिलेंडर मिल सके. वृद्धावस्था पैंशन का लाभ मिल सके. ( ऐसा हुआ तो शायद हनुमानजी सबसे वृद्ध पैंशनधारी होंगे जो आधार कार्ड के जरिए हजार रुपये की मासिक पैंशन पा रहे होंगे.)
फिर भी कम हैं खामियां
लेकिन एक बात तो माननी ही पड़ेगी. चुनाव आयोग की तरफ से जारी किए गये मतदाता पहचान पत्र के मुकाबले आधार कार्ड में कम ही कमियां नजर आ रही है.
मतदाता पहचान पत्र में तो चेहरे ही पहचाने नहीं जाते थे. स्त्रीलिंग का पुल्लिंग हो जाना आम शिकायत थी. जन्म तिथि सौ साल पहले से लेकर सौ साल बाद तक की डाल दी जाती थी. कौन कहता है कि भारत ने तरक्की नहीं की. अब हनुमानजी का कार्ड बना तो कम से कम उसमें तस्वीर हनुमानजी की ही डाली गयी. किसी अन्य देवी देवता की डाल दी जाती तो देश में बवाल कट चुका होता.
गंभीर बात यह है कि आधार कार्ड के जरिए सरकार जरुरतमंदों के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी का पैसा जमा करवाना चाहती है. अभी सरकार गैस, कैरोसिन, खाद्य और खाद पर कुल मिलाकर ढाई लाख करोड़ के लगभग सब्सिडी दे रही है. सरकार को लगता है कि जरुरतमंदों के आलावा बड़ी संख्या में फर्जी लोग इसका फायदा उठा रहे हैं. अब सीधे पैसा जाएगा तो सरकार पर से सब्सिडी का बोझ कुछ कम होगा जो हनुमानजी के पहाड़ जैसा हो गया है. लेकिन अब हनुमानजी का ही आधार कार्ड बनने लगा तो क्या होगा
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